शिकायतों की एक पोटली है,
मेरे पास,
जिसे तुम्हें दिखाना है,
पर जग से छिपाना है,
जैसे बचपन में सुंदर कंचे,
रखने पड़ते थे,
छिपाकर सबकी नजर से,
जैसे बचपन में इकट्ठा रेजगारी समेटे,
बचा ली गुल्लक महँगाई के असर से,
जैसे माँ छिपाकर रखती थी,
कँवलनयन काजल की डिब्बी,
और लिपस्टिक,
बचा जाती थीं दीवारें,
रंगीन तस्वीरों से,
जैसे बची रहती थी,
पेंसिल छीलने के बाद,
जियोमैटरी बॉक्स में,
छील से बनी कलाकृतियाँ,
चाक के छोटे टुकड़े,
हो सकता है, इक उम्र में,
जज्बात हो जाते हैं कचरा,
बड़प्पन निगल जाता है बचपना,
गंभीरता का चश्मा,
देखने लगता है,
सबकुछ साफ,
चाहता है सबकुछ संपूर्ण,
सब हो उजला,
पर फिर भी लिखना,
एक बचकाना प्रेम पत्र,
किसी दिन शिकायतों की पोटली खोलेंगे,
गुड्डी गुड्डे के साथ घर घर खेलेंगे।